मन्त्रों में है शक्ति

नमस्कार दोस्तों। आज हम आपसे जिस विषय में बात करेंगे वो है मंत्रों में सबसे बड़ा मंत्र कौन सा है? हर व्यक्ति को अपने जीवन में सफल होने की चाह होती है। हर कोई चाहता है कि उसके पास सारी सुख सुविधाएं हों, उसके जीवन में कभी कोई मुसीबत न आए। इसके लिए हर व्यक्ति केवल ईश्वर की शरण में जाता है। अपनी इच्छाओं को ईश्वर के आगे प्रकट करके व्यक्ति उस ईश्वर के किसी भी रूप को प्रसन्न करने का मार्ग खोजता है जो है मंत्र। आज हम आपको इसी से जुड़ी विशेष जानकारियां देंगे। तो हमारे साथ अंत तक बने रहिए।

मंत्र क्या है?

दोस्तों, किसी भी नाम का कोई न कोई अर्थ तो होता ही है। मंत्र के बारे में चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि मंत्र होता क्या है? इसकी परिभाषा क्या है? चलिए हम आपको बताते हैं। दरअसल मंत्र शब्द दो वर्णों के मेल से बना है मन् और त्र। मन् का अर्थ है चिंतन करना। तो वहीं त्र अक्षर का अर्थ है त्राण। त्राण शब्द से मतलब है छोड़ना या फिर मुक्ति।

दोस्तों, मंत्रा का सरल शब्दों में अर्थ होता है कि जो मन के अंतर में समाहित हो जाए वही मंत्र कहलाता है। लेकिन मंत्र का अर्थ बहुत ही व्यापक और गंभीर है। शब्दों का वह समूह जो किसी उपासक को किसी ऊर्जा पुंज से जोड़ती है। मनः तार्यते इति मंत्रः। इसका अर्थ है कि जो शब्द किसी विशेष प्रकार की ध्वनी के माध्यम से हमारे मन के दुःखों को दूर कर हमें शांति प्रदान करते हैं उन्हें ही मंत्र कहा जाता है।

मंत्र के प्रकार:

वैदिक मंत्र: हमारी वैदिक संहिताओं में दिए गए मंत्रों को वैदिक मंत्र कहते हैं।
तांत्रिक मंत्र: शिव पार्वती संवाद तथा भैरव संवाद में बताए गए मंत्रों को पौराणिक मंत्र कहा जात है।
पौराणिक मंत्र: हमारे पुराणों में देवताओं की उपासना के लिए जो मंत्र बताए गए हैं उन्हें पौराणिक मंत्रों की श्रेणी में रखा जाता है।
माला मंत्र: जो मंत्र 20 अक्षरों से बड़े हों उन्हें माला मंत्र कहा जाता है।
सिद्ध मंत्र: ऐसे मंत्र जो सिद्ध पुरुषों द्वारा बताए गए हैं उन्हें सिद्ध मंत्र कहते हैं। आपको बता दें दोस्तों, ऐसे मंत्र अत्यंत सौभाग्य से मिलते हैं।
मंत्रों के भेद: आपकी जानकारी के लिए बता दें, मंत्रों के तीन भेद हैं। सात्विक, राजसिक और तामसिक मंत्र। चलिए अब इनकी विशेषता जानते हैं।
सात्विक मंत्र: इन मंत्रों का जाप आत्म शुद्धि, मोक्ष और निष्काम भाव के लिए किए जाते हैं।
राजसिक मंत्र: राजसिक मंत्रों का प्रयोग वे लोग करते हैं जिन्हें जीवन में हर प्रकार का सुख, यश या फिर कोई बड़ा पद ग्रहण करना होता है।
तामसिक मंत्र: दोस्तों, ये वो मंत्र हैं जिन्हें मारण, उचर्टन तथा दमन आदि क्रियाओं के लिए तंत्र क्रिया के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।

मंत्रों के दो प्रमुख प्रकार हैं आग्नेय और सौम्य मंत्र

आग्नेय मंत्र: जिन मंत्रों में आकाश, पृथ्वी और अग्नि के वर्ण अधिक होते हैं वो आग्नेय मंत्रों की श्रेेणी में आते हैं।
सौम्य मंत्र: वहीं दूसरी ओर ऐसे मंत्र जो पानी और वायु तत्वों से युक्त होते हैं उन्हें सौम्य मंत्र कहा जाता है।
अगर किसी को पुरुष देवताओं को प्रसन्न करना होता है तो वे आग्नेय मंत्र का प्रयोग करते हैं। तो वहीं दूसरी ओर स्त्री देवियों को प्रसन्न करने के लिए सौम्य मंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई

आपके मन में अकसर ये सवाल आता होगा कि कैसे मंत्रों की उत्पत्ति हुई? इसके संबंध में हमें आगम, निगम ग्रांथों से पता चलता है। इन ग्रंथों में हमें उल्लेख मिलता है कि जब इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई तो इसके साथ ही नाद की भी उत्पत्ति हुई। इस ब्रह्माण्ड का सबसे पहला नाद है ओमकार।

वहीं ओमकार जब शब्द रूप में इस ब्रह्माण्ड में रहता है तो वही हमारे भीतर यानी हमारे अंतर मन में भी अनहद नाद के रूप में स्थापित होता है। इसी ओमकार से समस्त ब्रह्माण्ड का जुड़ाव है। इसीलिए आपने अकसर ये बात सुनी होगी ‘‘शब्द ब्रह्म’’ यानी शब्द ही ब्रह्म है। इसी शब्द की महिमा का विस्तार भगवान महादेव ने किया। जब उन्होंने आगम-निगम में माता पार्वती और ऋषि मुनियों को ये ज्ञान दिया कि ओमकार नाद के भीतर ही अन्य कई सारे नाद छिपे हुए हैं।

अगर आप इस संसार के शोर-गुल, ध्वनि आदि तत्वों को सुनें और इसका वर्गीकरण करें तो ये प्रमुख रूप से 51 वर्गों में बांटे जाते हैं। यही कारण है कि योगियों ने भी हमारे मस्तिष्क में 51 बिंदुओं की स्थापना की। हर एक बिंदु का एक विशेष बीज मंत्र या यूं कहें कि विशेष प्रकार की ध्वनी होती है। इसी प्रकार अगर आप संपूर्ण ब्रह्माण्ड को 51 भागों में बांट दें तो आप जान पाएंगे कि सब का एक विशेष ध्वनी से संबंध है।

वही ध्वनी एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को प्रभावित करती है। इसीलिए ये मंत्र रहस्यमय हो गए। लेकिन मंत्र के क्षेत्र की परिभाषा बहुत छोटी सी है। कुछ लोगों का मानना है कि मंत्र का अर्थ है एक ऐसा शब्द जो प्रभाव उत्पन्न कर सके।
हमारे मंन के अंदर से जो ऊर्जा को बाहरी जगत में लेकर आए वो या मन के द्वारा जो ध्वनी श्रद्धा और भावना के साथ जुड़ी हुई हो वही मंत्र कहलाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा मंत्र कौन सा है ?

हिन्दु धर्म में करीब 33 करोड़ देवी-देवता माने गए हैं। सभी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनेकों मंत्र और स्तोत्र हैं।
इन सभी स्तोत्रों के अंतर्गत उस विशेष देव को ही सर्वस्व कहा गया है। उदाहरण के तौर पर आदित्य हृदय स्तोत्र में भगवान् सूर्य को सर्वस्व कहा गया है। राम रक्षा स्तोत्र में भगवान् श्री राम को सर्वस्व कहा गया है।

तो वहीं शिवमहिम्नः स्तोत्र में भगवान् शिव को सर्वस्व कहा गया है। इन सभी स्तोत्रों को पढ़कार या सुन कर हम सब इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि आखिर सबसे बड़े भगवान् कौन हैं? साथ ही यह प्रश्न भी हमारे मन में जागने लगता है कि सबसे बड़ा और शक्तिशाली मंत्र आखिर कौन सा है?

अगर देखा जाए तो सबसे बड़ा होना केवल हमारे मन का वहम है। हम सोचते हैं कि हमारे इष्ट देव भी सबसे बड़े और शक्तिशाली हों। सति अनुसूया को आखिर कौन नहीं जानता? ये वही हैं जिन्होंने अपने पति व्रत धर्म के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी भगवान् शिव को बालक बना दिया था।

इनके पति का नाम था अत्रि मुनी। अब आप सोच रहे होंगे कि अत्रे मुनी ही सबसे बड़े हैं। नहीं दोस्तों। यह तो केवल सति अनुसूया के पति व्रत धर्म का प्रभाव था। वास्तव में सबसे बड़ा अगर कोई है तो वो है हमारी श्रद्धा और भक्ति।

अगर कोई व्यक्ति साधारण गुरू में भी श्रद्धा और विश्वास रखता है तो वो भी भव सागर से पार हो जाता है। तो वहीं दूसरी ओर अगर आपको सच्चा गुरू भी मिल जाए और उस गुरू के प्रति श्रद्धा न हो तो शिष्य का जीवन व्यर्थ है। दोस्तों, आप में से बहुत से लोग ये जानते होंगे कि अनेक पुराणों की रचना ऋषि वेद व्यास ने की है।

प्रत्येक पुराण के अंतरर्गत उन्होंने उस दैवीय शक्ति को सर्वोपरि और महान बताया है। जैसे शिव पुराण में वेद व्यास ने भगवान् शिव को, विष्णु पुराण में भगवान् विष्णु को, तो वहीं श्रीमद्भाग्वत पुराण में भगवान् श्री कृष्ण को और देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा को।

इन सबके रचयता ऋिषि वेद व्यास ही हैं। अब जरा कल्पना के सागर में डूब कर सोचिए कि रचनाकार एक ही हैं। फिर भी वेद व्यास जी ने अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को महान और शक्तिशाली क्यों बताया?

क्या उन्हें ये नहीं मालूम था कि कौन सर्वशक्तिमान है? क्यो वो ये नहीं जानते थे कि भगवान् श्री कृष्ण महान हैं या भगवान् शिव, भगवान् विष्णु महान हैं या फिर मां दुर्गा। दरअसल, ऋषि वेद व्यास ने भगवान् के इन विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करते हुए एक निराकार शक्ति का ही गुणगान किया है।

इसीलिए सबसे बड़ी भक्ति, श्रद्धा और विश्वास ही है। दरअसल, कोई भी मंत्र छोटा या बड़ा नहीं कहलाता है। अगर कोई साधक या भक्त अपनी पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किसी साधारण मंत्र का भी जाप करता है तो वो भी उसके लिए महामंत्र के समान ही हो जाता है।

लेकिन अगर कोई साधक महामंत्र में भी विश्वास न रखे तो वह महामंत्र भी उसके लिए अक्षरों से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। जैसे आप सब ने गंगाजल को देखा होगा। हर कोई गंगाजल को पवित्र मानता है। मां मानकर उनकी पूजा करता है।
अगर कोई व्यक्ति इन बातों में विश्वास ही नहीं रखता होगा तो उसके लिए गंगाजल केवल साधारण जल के रूप में ही होगा। वो गाना तो आप ने सुना ही होगा ‘‘मानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी।’’ इसीलिए हर स्तोत्र या मंत्र की अपना अलग महिमा और महत्व होता है। किसी को हम छोटा या बड़ा मंत्र नहीं कह सकते।

मंत्रो का उच्चारण कैसा होना चाहिए ?

दोस्तों, वैसे तो हमारे हिन्दु धर्म में विभिन्न प्रकार की पूजा-उपासना बताई गई हैं। परंतु इन सभी में मंत्रों का जाप करना सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। ऐसा इसलिए है दोस्तों कयोकि मंत्र हमारे मन को तुरंत ही एकाग्र कर देते हैं और शीघ्र प्रभाव देते हैं। मंत्रों की शक्ति असीम है। मंत्रों का जाप करने से आत्मा, शरीर तथा समस्त वातावरण शुद्ध हो जाता है। इनमें भी आज हम आपको बताने वाले हैं कि शुद्ध, सात्विक और वैदिक मंत्रों का जाप करते समय आपको कौन कौन सी सावधानियां रखनी हैं। जिससे उस मंत्र का आपको पूर्ण फल मिल सके।

1. सबसे पहली सावधानी आपको यह रखनी है दोस्तों, कि आप हाथों में माला लेकर ही मंत्रों का जाप करें। माला का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि मंत्रों की संख्या में कोई चूक न हो। एक सामान्य माला में 108 दाने या मनके होते हैं। ध्यान रहे कि जिस माला से आप जाप कर रहे हैं वो आपकी व्यक्तिगत होनी चाहिए। अगर आप माला को ढंक कर जप करें ते और भी अच्छा है। जप करने वाली माला को हमेशा शुद्ध करके रखें। इसका आपको शुभ परिणाम मिलेगा। जिस माला से आप जप कर रहे हैं उसे धारण करने की गलती न करें।
2. इसके अलावा मंत्र जप के दौरान आपके तन, मन, वस्त्र, पूजा का स्थान, आसन आदि की स्वच्छता का ध्यान भी आपको ही रखना है।
3. मंत्र का उच्चारण शुद्ध और साफ होना चाहिए। बेहतर यही होगा कि आगर आप किसी मंत्र का जाप करने वाले हैं तो उसे जाप करने से पहले ही याद कर लें। जिससे मंत्र जाप के समय उच्चारण में आपको कोई भी परेशानी न हो।
4. मंत्र की सिद्धि के लिए यह आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। इसके लिए आपको मंत्र जप के दौरान भी यह कोशिश करनी चाहिए कि मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर न आए। हालांकि वैदिक मंत्रों को सिद्ध करने में थोड़ा समय लगता है। लेकिन एक बार ये सिद्ध हो गए तो इनका असर कभी कम नहीं होता।
5. इस बात का आपको विशेष ध्यान रखना है कि मंत्र जप किसी को भी नुकसान पहुंचाने की भावना से न किया जाए। जब भी आप मंत्र जाप करें तो केवल अपनी परेशानियों के निवारण के लिए ही करें।
6. जप करते समय धूप या दीप जलते रहने चाहिए। आप जिस भी देवी या देवता या ग्रहों का ध्यान कर रहे हैं कोशिश करें कि उनकी फोटो आपके सामने हो। अगर आप नवग्रहों का जाप कर रहे हैं तो उनकी स्थापना करें।
7. इसके अतिरिक्त जप करने का स्थान, समय, माला और आसन आदि एक समान ही रहना चाहिए। एक ही नियमित समय और स्थान पर आपको जप करना चाहिए।
8. जप काल में आपको मांसाहार और मदिरापान का त्याग करना चाहिए।
9. अपना व्यवहार शुद्ध रखें। इस दौरान किसी पर भी, किसी भी बात पर गुस्सा न करें। इस दौरान आपको विवादों से बचना चाहिए।
10. एक और विशेष बात यह है दोस्तों, कि मंत्र जप करते समय आपको ब्रह्मचर्य का पालन भी आवश्य करना चाहिए। इससे आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे।
11. मंत्र जाप करते समय आपको आसन पर भी ध्यान देना चाहिए। आपका आसन शुद्ध और ऊनी होना चाहिए। यानी ऊन से बना हुआ।
12. ध्यान रहे कि बिना कोई आसन बिछाए किसी भी मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए।
13. अगर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर जाप किया जाए तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।
14. मान लीजिए किन्हीं कारण वश आप सुबह के समय जाप नहीं कर पाते हैं तो आप इसे अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी समय कर सकते हैं क्योंकि ईश्वर का नाम कभी भी, किसी भी परिस्थिति में लेना हितकारी होता है।
15. मंत्र जाप के बाद कम से कम दशांश हवन कर ब्राह्मणों को दक्षिणा आदि देने की परंपरा है। यदि आप हवन न कर पाएं तो 10 प्रतिशत जब ज़्यादा करें।

दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंत्र

फ्रेंड्स। आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे मंत्र के बारे में जो कि शास्त्रों के अनुसार दुनिया का सबसे अधिक शक्तिशाली मंत्र माना जाता है। हमारे वेदों में एक ऐसा मंत्र है जो सर्वोपरि कहा गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे शास्त्रों के अनुसार देवी-देवता भी विशेष प्रकार की शक्तियां पाने के लिए इसी मंत्र का जाप करते थे। वेदों की मानें तो इस मंत्र से ऊपर अन्य कोई मंत्र नहीं है। यद्यपि आज हम सब कलयुग में जी रहे हैं, तथापि यह मंत्र आपकी सभी परेशानियों को दूर करने की चमत्कारी शक्ति रखता है। इस मंत्र को कहते हैं गायत्री मंत्र। इस मंत्र का जाप करने से आपकी कोई भी मनोकामना पूर्ण हो सकती है। क्योंकि इस मंत्र में सभी परमात्माओं की शुद्धि समाहित है। इसके शुरूआती शब्दों ‘‘ओम भूर भुवः स्वः’’ में ही पूरे मंत्र का सार छिपा है। चलिए सबसे पहले आपको इसका मतलब समझाते हैं। गायत्री मंत्र का मतलब है कि हे परमात्मा, हे परम पिता, आप हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर ही प्रेरित करें। गायत्री मंत्र का जाप करने से आपके विचारों की भी शुद्धि हो जाती है। आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश हो जाता है। इससे आपके चेहरे पर चमक आती है। साथ ही आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी आभास होने लगता है।

गायत्री मंत्र के नियम:

 

1. दोस्तों, अगर आपको गायत्री मंत्र का जाप करना है तो उसे आपको एक रिदम में करना होता है। आपको जल्द बाजी में इस मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए।
2. कब करें मंत्र जाप: दोस्तों, गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए तीन विधान दिए गए हैं। आप प्रातःकाल यानी सुबह के समय उठकर मंत्र जाप करें। अगर सुबह न कर पाएं तो मध्याहन काल यानी दोपहर के समय करें। तब भी न हो पाए तो आप सूर्यास्त होने के कुछ समय पूर्व इसका जाप कर सकते हैं। रात्रि के समय इस मंत्र का जाप करना हो तो आपको मौन रह कर ही जाप करना चाहिए।
3. महर्षि भरद्वाज, महर्षि दुर्वासा, महर्षि विश्वामित्र ऐसे ऋषि मुनी हैं जो गायत्री मंत्र का जाप करते थे। इस कारण इनमें इतनी शक्ति थी कि अगर ये किसी देवी-देवता को भी श्राप दे देते थे तो वो पूरा हो जाता था।
4. गायत्री मंत्र का जाप करते समय आपको चाहिए कि आप रुद्राक्ष की माला का प्रयोग अवश्य करें। ऐसा करना आपके लिए लाभकारी होगा।
5. जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा है उन्हें रोज़ सुबह उठकर सफेद कपड़ों में गायत्री मंत्र का रुद्राक्ष की माला के साथ जाप करना चाहिए। ऐसा करने पर आपकी सारी परेशानी चमत्कारिक ढंग से दूर हो जाएगी।
6. संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तो पति-पत्नी को रोज़ सुबह उठकर 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। अवश्य ही संतान प्राप्ती हो जाएगी।
7. धन से जुड़ी कोई समस्या है तो आप शुक्रवार के दिन पीले कपड़े पहन कर गायत्री मंत्र का जाप करेंगे तो धन की समस्या दूर हो जाएगी। ध्यान रहे कि इस दौरान आपको गायत्री मंत्र के शुरू में और अंत में श्रीं संपुट लगाना है।

मां दुर्गा का सबसे बड़ा मंत्र

दोस्तों, अगर आप जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे सरल उपाय है देवी मां की उपासना। धर्म ग्रंथों के अनुसार जिसके ऊपर देवी मां की कृपा होती है उसे जीवन में हर प्रकार का सुख मिलता है।
साथ ही उसके ऊपर किसी प्रकार की मुसीबत नहीं आती है। मां दुर्गा को ऐसी शक्ति देने वाली माना गया है जो आपके सभी दुःखों का नाश कर देती है। आप में से ऐसे बहुत से लोग होंगे जो ये नहीं जानते कि दुर्गा माता को दुर्गातिनाशिनी भी कहा जाता है।

मां दुर्गा को प्रसन्न करना बहुत ही आसान होता है। इसके लिए एक भक्त को किसी छोटे बालक के समान मां की पूजा करनी है। ये भी याद रखना है कि इस दौरान भक्त के मन में किसी के प्रति भी द्वेष की भावना न हो। दोस्तों, आज हम आपको मां दुर्गा का आठ अक्षरों का एक ऐसा चमत्कारी मंत्र बताने जा रहे हैं जिससे आपके सभी कष्ट दूर होंगे और आपकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।

इस मंत्र का जाप करने की सही विधि यही है कि आप रोज सुबह स्नान आदि करके लाल कपड़े पर मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें। देवी दुर्गा को लाल फूल बहुत प्रिय हैं। इसलिए मां दुर्गा को लाल फूल अर्पित करें।

इसके बाद आप स्फटिक की माला के साथ इस मंत्र का जाप करें। कम से कम पांच माला का जाप जरूर करें।
आप पाएंगे कि आपको बहुत जल्द इसके शुभ परिणाम मिलने लगेंगे। अगर आप रोज़ इस मंत्र का जाप न कर पाएं तो केवल शुक्रवार के दिन 11 बार भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

इस जाप से वास्तु दोष, पित्र दोष, सर्प दोष आदि भी दूर होते हैं। यह चमत्कारी मंत्र है ‘‘ऊॅं दुं दुर्गायै नमः।’’
भोलेनाथ का सबसे बड़ा मंत्र: हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान् शिव का स्थान सबसे ऊॅंचा है। देवों के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा गया है। क्योंकि वे बहुत जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा की पूर्ति करते हैं।

शाबर मंत्र द्वारा साधना भी देव पूजा का ही विधान है। इसमें शाबर मंत्रों के उच्चारण के माध्यम से एक बालक के रूप में अपने इष्ट देव को प्रसन्न किया जाता है। आज हम आपको भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे सरल शाबर मंत्र के बारे में जानकारी देंगे। जिसके माध्यम से आप अपने सभी कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं।

आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि शाबर मंत्र भगवान् शिव के मुख से कैसे निकले। दोस्तों, द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपथ अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ की कड़ी तपस्या की। एक दिन भगवान् भोलेनाथ अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए शिकारी के भेस में उनके समक्ष प्रकट हुए।

कहते हैं कि भगवान् शिव जो कि शिकारी के भेस में आए थे और अर्जुन के पास से गुजर रहे सूअर पर बाण चलाकर उसे मार डाला। अब दोनों के बीच सूअर का अधिकारी कौन है इस बात पर बहस छिड़ गई। शिकारी बने भगवान शिव ने अर्जुन से कहा कि मुझसे युद्ध करो। युद्ध में जो जीतेगा। सूअर पर उसी का अधिकार होगा। अर्जुन और भगवान् शिव का भीषण युद्ध शुरू हो गया। युद्ध देखने के लिए मां पावर्ती भी शिकारी का भेस बनाकर वहां पर आ गईं।

तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि ठहरो। श्री कृष्ण को मालूम हो चुका था कि जो भगवान् शिकारी के भेस में अर्जुन से युद्ध कर रहे हैं वो स्वयं भगवान् शिव हैं। उन्होंने यह बात अर्जुन के कान में बताई। यह सुन कर अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर गए और उनसे प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने अपना असली स्वरूप दिखाया। शिव जी ने अर्जुन को उनकी इच्छा अनुसार वर प्रदान किया।

तभी माता पार्वती ने भी अपना असली स्वरूप दिखाया। उस समय जो अन्य शिकारी युद्ध देख रहे थे उन्होंने मांस का भोजन किया और मां पार्वती को वही भोजन, शिकारी समझ कर खाने को दे दिया। तब मां भगवति ने वही भोजन ग्रहण किया। इसलिए जब वे अपने असली रूप में आईं तो शिकारियों से कहा कि मैं प्रसन्न हूं।

कोई वर मांग लो। इस पर शिकारियों ने कहा कि हे मां, हम भाषा, व्याकरण आदि नहीं जानते। न ही हमें संस्कृत का ज्ञान है। न ही हम लंबे चैड़े विधि विधान कर सकते हैं। पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है।

यदि आप प्रसन्न हैं तो आप भगवान् शिव से हमें ऐसे मंत्र दिलवा दीजिए जिससे हम सरलता से आपका पूजन कर सकें। मां भगवति की प्रसन्नता देख और भीलों यानी शिकारियों का भक्ति भाव देख कर भगवान् शिव ने शाबर मंत्रों की रचना की। उन शाबर मंत्रों में से एक मंत्र उन भीलों को बताया। इनका जपने मात्र से स्वयं भगवान् शिव को प्रकट होना पड़ता है। नाथ पंत में भगवान भोलेनाथ को आदि नाथ कहा जाता है।

माता पार्वति को उदय नाथ कहा जाता है। भगवान् शिव ने यह विद्या भीलों को प्रदान की थी। इस मंत्र के जाप के लिए आप पूर्व दिशा की ओर एक चैकी रखें। उस पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान् शिव की प्रतिमा को स्थापित करें। धूप व घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें। एक तांबे के लोटे में जल भर कर रख दें। ऐसा आपको शिव भगवान् की पूजा शुरू करने से पहले करना है।

अब भगवान् श्री गणेश और अपने आराध्य गुरू का ध्यान करें। अब हाथ में जल लेकर संकल्प करके, इस शाबर मंत्र का जाप शुरू कर दें। मंत्र को कंठस्थ करें। लगातार सवा घंटे इस मंत्र का जाप करें। या आप अपने सामथ्र्य के अनुसार इसकी अवधि बढ़ा भी सकते हैं।

इस मंत्र को आप माला और बिना माला दोनों प्रकार से कर सकते हैं। अगर आप माला का प्रयोग करते हैं तो वो रुद्राक्ष की ही माला होनी चाहिए। इस मंत्र को जपते समय अपने मन के भावों को भगवान् भोलेनाथ को ही समर्पित कर दें। पूर्ण विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ साधना करें। इस साधना को आप लगातार 41 दिनों तक करें। इस दौरान रोज़ मंदिर जाकर शिवलिंग की रुद्राभिषेक द्वारा पूजन करना चाहिए। इस प्रकार से शाबर मंत्र का जाप करके आप बड़ी से बड़ी परेशानी को दूर कर सकते हैं। चलिए अब आपको बताते हैं वो मंत्र कौन सा है?

‘‘आद अंत धरती, आद अंत परमात्मा
दोनों बीच बैठे, शिवजी महात्मा, खोल घड़ा दे दड़ा
देखा शिवजी महाराज देते शब्द का तमाशा’’

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