इसरो की कहानी हमारी जुबानी

नमस्कार दोस्तों। स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट पर। जैसा कि आप सब जानते हैं भारत एक प्रगतिशील देश है। ये बात और है कि हजारों वर्षों पहले भारत विकसित देश की श्रेणी में आता था। आज भारत ने अपनी पहचान पूरी दुनिया में बनाई है। फिर चाहे वो खेल का क्षेत्र हो, विज्ञान का क्षेत्र हो या फिर तकनीक का क्षेत्र, यहां के लोगों ने भारत को एक अलग पहचान दिलाने में अपना विशेष योगदान दिया है।

किसी भी देश की प्रगति में उस देश के वैज्ञानिकों के योगदान को भूला नहीं जा सकता है। वैज्ञानिकों की मदद के बिना कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता है। हमारे देश में भी ऐसे कई वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर पूरी दुनिया में देश का मान बढ़ाया है। ऐसे-ऐसे आविष्कार कर दिखाए हैं जिनके बारे में दूसरे देश सोच भी नहीं सकते। आज हम आपसे इसी विज्ञान से जुड़े एक पहलू पर चर्चा करेंगे। आज हम आपको बताएंगे भारत की स्पेस एजंसी इसरो के बारे में। सबसे पहले आपको बताते हैं कि इसकी फुल फाॅर्म क्या है। इसकी फुल फाॅर्म है ‘‘इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन’’।

इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है। इसका मुख्यालय बंगलौर में स्थापित है। आपको बता दें, इस संस्थान में 17 हजार के लगभग कर्मचारी तथा वैज्ञानिक काम करते हैं। इसरो का प्रमुख कार्य है भारत देश के लिए विभन्न प्रकारी की अंतरिक्ष से जुड़ी टेक्नोलाॅजी प्रोवाइड करवाना। जिस प्रकार धरती पर दुनिया बसी है, ठीक उसी प्रकार अंतरिक्ष में भी एक अलग दुनिया बसती है। यहां पर रहने वाले जीवों को एलियन या हिन्दी में कहें तो दूसरी दुनिया का प्राणी कहा जाता है।

इन प्राणियों के बारे में जानना हमारे लिए बेहद जरूरी है। जैसे हम लोग इन प्राणियों के बारे में जानने के इच्छुक हैं, वैसे ही वो लोग भी धरती के रहस्यों को जानना चाहते हैं। यहां की संस्कृति से वाकिफ होना चाहते हैं। यही कारण है कि कई बार आसमान में उड़नतश्तरी देखी जाती है। ये वह यान है जिसके द्वारा एलियन धरती पर आते हैं। बहुत से स्थानों पर ऐसी घटनाएं देखी गई हैं जब धरती पर एलियन के पैरों के निशान मिले हैं।

इसरो का मुख्य उद्देश्य हैं प्रमोचक यानोंए उपग्रहोंए राकेट तथा भू.प्रणालियों का विकास। इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 में हुई थी। स्थापना के समय इसका नाम था इनकोस्पार यानी श्अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समितिश् हुआ करता था। अगर बात की जाए भारत के पहले उपग्रह की तो वो था आर्यभट्ट। इस उपग्रह का नाम भारत के महान मेथेमैटीशियन आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। यह उपग्रह पहली बार सोवियत संघ द्वारा 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष की दुनिया की जानकारी लेने के लिए छोड़ा गया था। हालांकि कुछ तकनीकी खराबी के कारण इस उपग्रह ने 5 दिन बाद ही काम करना बंद कर दिया था। फिर भी यह भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है।

इस संस्थान की मदद से भारत ने 7 जून 1979 को दूसरा उपग्रह धरती की कक्षा में भेजा। इसका नाम था ‘भास्कर’ उपग्रह। इस उपग्रह का कुल वजन था 442 किलो। इसके बाद वर्ष 1980 में भारत ने एसएलवी-3 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। प्रक्षेपण यान का अंग्रेजी में मतलब होता है लाॅंचिंग वेहकल। यानी जिसकी सहायता से हम राॅकेट या किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजते हैं। बाद में इसरो ने दो अन्य रॉकेट विकसित किए।

जनवरी 2014 में जीसैट .14 का एक जीएसएलवी.डी 5 लाॅंच किया गया। यह इसरो की एक और सफलता थी क्योंकि इसमें एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया था। आज के समय में इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन के अध्यक्ष का नाम है कैलासवटिवु शिवन। आज के समय में न केवल भारत अपनी अंतरिक्ष से संबंधित जरूरतों की पूर्ति कर रहा है बल्कि अपनी क्षमताओं के बल पर ही दूसरे देशों के साथ व्यापारिक तथा अन्य कार्यों में सहयोग भी कर रहा है।

वर्ष 2008 की 22 अक्टूबर को इसरो ने अंतरिक्ष में चंद्रयान.1 भेजा था। इस यान ने पूरे चंद्रमा की परिक्रमा की थी। उसके बाद 24 सितम्बर 2014 को मंगल ऑर्बिट मिशन के नाम से एक यान मंगल ग्रह की परिक्रमा करने के लिए भेजा। इस यान ने मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया। इस तरह भारत ऐसा पहला राष्ट्र बन गया जो अपने पहले ही प्रयास में सफल हो गया। एशिया में मंगलग्रह की कक्षा तक यान पहुंचाने वली अंतरिक्ष एजंसियों की श्रेणी में इसरो चैथे स्थान पर रहा।

इस उपलब्धि के लिए वर्ष 2014 में इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। मंगलयान की  सफल लाॅंचिंग के करीब एक साल बाद इसरो ने वर्ष 2015 में 29 सितंबर को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित कर दिया था। इसके बाद इसरो ने जून 2016 तक अलग-अलग देशों के करीब 57 उपग्रहों को अंतरिक्ष की दुनिया में भेजने का यानी लाॅंच करने का काम कर चुका था। इसके जरिए इसरों ने लगभग 10 करोड़ अमेरिकी डाॅलर की कमाई की थी।

 

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